गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

मेघ कथा

घूमता रहा 
मैं अकेला आसमान में 
जाने 
कितने लोगों से मुलाकात हुई 
इस जहाँ  में 
सोचा था 
अभिब्यक्त करूंगा खुद को 
तृप्त करूँगा सबको 
लेकिन 
मेरे ये ख्यालात 
वो सारी बात 
मेरे दिल में  ही धरी रह गयी 
क्योंकि तभी 
जाने किधर से हवा बह गयी
और ले गयी 
अपनी बाँहों में समेट कर 
क्षितिज कि उस ओर 
जहाँ प्रतीत होता है 
मिल रहें हों 
धरती और आसमान के छोर 
जाकर वहां लगा
उस भीड़ में खो गया हूँ 
अपनी 
अभिब्यक्ति को भूल गया हूँ 
इच्छाएं दम तोड़ रही थी 
बातें 
सुनने को मिल रही थी 
ऐसे ही 
काफी वक्त बीत गया 
फिर से मौसम 
बरसात का आ गया 
मन हरसाया, बाहर आया 
देखा लोग खुश हो रहे थे 
हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे 
ऐसे में मैं भी 
खुद को रोक न पाया 
उनकी खुशियों में
साथ  निभाया 
इस तरह अभिब्यक्त किया 
खुद को 
तृप्त किया सबको, तृप्त किया सबको...........

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