घूमता रहा
मैं अकेला आसमान में
जाने
कितने लोगों से मुलाकात हुई
इस जहाँ में
सोचा था
अभिब्यक्त करूंगा खुद को
तृप्त करूँगा सबको
लेकिन
मेरे ये ख्यालात
वो सारी बात
मेरे दिल में ही धरी रह गयी
क्योंकि तभी
जाने किधर से हवा बह गयी
और ले गयी
अपनी बाँहों में समेट कर
क्षितिज कि उस ओर
जहाँ प्रतीत होता है
मिल रहें हों
धरती और आसमान के छोर
जाकर वहां लगा
उस भीड़ में खो गया हूँ
अपनी
अभिब्यक्ति को भूल गया हूँ
इच्छाएं दम तोड़ रही थी
बातें
सुनने को मिल रही थी
ऐसे ही
काफी वक्त बीत गया
फिर से मौसम
बरसात का आ गया
मन हरसाया, बाहर आया
देखा लोग खुश हो रहे थे
हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे
ऐसे में मैं भी
खुद को रोक न पाया
उनकी खुशियों में
साथ निभाया
इस तरह अभिब्यक्त किया
खुद को
तृप्त किया सबको, तृप्त किया सबको...........
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