ॐ
नव संवत्सर पर कामना है
आप आगे बढे निरंतर ...........
वह पथ क्या
वह पथिक क्या
जिसकी राहों में
बिखरे शूल न हों
नाविक की
धैर्य परीक्षा क्या
जब धारायें
प्रतिकूल न हों.
माँ कामनाएँ पूर्ण करें...........
हिमांशु वशिष्ठ
सोमवार, 15 मार्च 2010
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
अजनबी
कल रात ख्वाबों में आकर
उसने मुझे जगाया था
हमें नहीं मालूम
वो मेरा अपना ही साया था
इस भरे शहर में
हर शख्स था अजनबी
उसने अपने होने का एहसास कराया था | कल..
अंदाज-ए-बयां होता रहा
उनकी निगाहों से
जो उसने मुझसे छुपाया था ,
अक्श देखा जो उसका
उसके करीब से
आँखों में अपना ही चेहरा
नज़र आया था | कल....
मन की उसने दी सौगात
हंसी और ख़ुशी की
फिर भी चैन मेरे पास न था
करता रहा मैं बात उसकी तस्वीर से
मैं अकेला कब था ?
अपनी तन्हाईओं में उसको पाया था | कल..
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