गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

शबनम

ठंडी सी एक बूंद गिरी थी 
मन को उसने सिहराया था 
हिम का अंश थी या कि शबनम 
कोई समझ नहीं पाया था |
रात चाँदनी तारे करते टिम-टिम 
सन्नाटा सा छाया जग में 
दिल के दरवाजे पर दस्तक देने 
ख्वाब में कोई आया था | ठंडी.......
बागों में कुछ फूल खिले थे 
बैठे पंछी शाखाओं पर 
सर-सर करता हवा का झोंका 
उसकी यादों को ले आया था | ठंडी.....
कल-कल करती नदियाँ जैसे 
चंचल मन है उसका वैसे 
देख के उसने मेरा चेहरा 
पलकों को ऐसे छपकाया था | ठंडी.....
बात करे तो ऐसा लगता 
कोई कली हो मुस्काई 
दिल कि बात अभी तक उसके 
मैं तो जान न पाया था | ठंडी....

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